बिल्कुल सही सवाल ।कुडमी समाज मे धीमा ही सही परिवर्तन तो आ ही रहा है ।और अपने हक अधिकार के साथ साथ पुरे झारखंडी समाज के हित और अधिकार के बारे मे सोच भी रहा है ।इन सब के बावजूद हमे एक बात तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि झारखंड के आदिवासी मूलवासी मे शिक्षा की कमी है ।यही कमी आज हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है ।बिनोद बाबू ने काफी पहले ही इसे पहचान ली थी, शायद इसीलिए उन्होंने "पढो और लढो "का नारा दिया था ।शिक्षा के कमी के कारण हम समझ ही नही पाते है कि हमारा हक क्या है ? और अधिकार क्या है? नतीजा जो बाहरी नेता मिडिया शोषनकर्ता हम झारखंडियो को समझा देते है, हम उन्हे ब्रह्मवाक्य समझ पीछे पीछे चल पडते है ।हा झारखंडियो मे एक बिमारी और है "कोई भी झारखंडी अपने आप को अपने आप को प्रकांड पंडित से कम नही समझते है ।इसलिए स्वयं सत प्रतिशत गलत होने के बावजूद वो अपने को गलत स्वीकार नही करता है और थेथराई पर उतर आता है ।झारखंड मे आजसू नेतृत्व से लेकर स्पोटर्स तक इसी बिमारी के शिकार है ।जहा तक कुडमी समाज की बात है तो आजकल राजनीति की तरह समाज की बात करना भी एक फैशन बन गया है । अधिकांश संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल के चमचे द्वारा ही संपोषित एवं संरक्षित है ।जो जरूरत पडने पर उनका उपयोग करते है ।बिनोद मेले के दौरान एक ऐसी बानगी देखने को मिला जब भीड़ जमा करने के लिए बडी बेशर्मी से समाज के नाम का उपयोग किया जा रहा था ।।हा पर सभी संगठन ऐसे नही है ।अभी भी समाज के लिए दुर्दशितापुर्ण और समर्पित ढंग से काम करने वाले लोग भी है जिनकी सोच काफी स्वस्थ है पर स्वस्थ सोच को राजनैतिक नेतृत्व हजम नही कर पा रहे है ।करे भी कैसे? पेट पत्नी पैसा पद पहुच और पावर की राजनीति करने वाले को झारखंड और झारखंडियो की नही अपनी निजी हित सर्वोपरि लगती है ।इन्हे झारखंड और झारखंडियो की मान सम्मान हक अधिकार से कोई लेना-देना नही है । आप सही है, और आशा करता हु सही ट्रेक पर चलते रहेगे ।हमे आप जैसे सही और दुर्दशितापुर्ण सोच वाले युवा पर गर्व है ।
Home
kudmi
kudmi samaj
कुडमी समाज मे धीमा ही सही परिवर्तन तो आ ही रहा है ।
कुडमी समाज मे धीमा ही सही परिवर्तन तो आ ही रहा है ।
0 comments: