Sunday, 25 December 2016

बिनोद बिहारी महतो का निधन एवं प्रभाव
बिनोद बिहारी महतो का निधन एवं प्रभाव
बिनोद बिहारी महतो जब पहली बार सांसद पहुँचे, तो कई काँग्रेस के नेता एवं मंत्री उनसे बात करने के लिए उनके पास गये । श्री नरसिंहा राव उस समय काँग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री थे। श्री राजीव गाँधी को लोक सभा चुनाव के दौरान ही प्रचार के समय चिकमंगलूर में हत्या कर दी गई थी। वरना श्री राजीव गाँधी ही पुनः भारत के प्रधानमंत्री बनते । पर ऐसा नहीं हुआ। पर नरसिंहा राव ने झारखण्ड आन्लोलन के विषय में सोचना छोड़ा नहीं था। स्व0 राजीव राजीव गाँधी ने अपने कार्यकाल में “झारखण्ड मामलों से संबंधित समिति” का गठन किया था, जिसका जिक्र हमने पहले ही किया है। इसकी रिपोर्ट जो मई 1990 में तैयार की गई, रखी हुई थी। 1991 में लोक-सभा चुनाव मई तक सम्पन्न हो सका था। राजीव गाँधी के समान ही झारखंड आन्दोलन एवं इसके प्रभावों की जानकारी श्री नरसिंह राव को थी और वे इसे एक मुकाम देना चाहते थे।
उनके मंत्रियों ने बिनोद बाबू से इस सम्बंध में वार्त्ता की थी। बिनोद बिहारी महतो से सरकार बनाने के लिए समर्थन भी माँगा था। पर बिनोद बाबू का स्पष्ट कहना था कि झारखंड राज्य के विषय में सकारात्मक निर्णय लेने पर ही वे समर्थन दे सकते थे। तब तक श्री नरसिंह राव स्पष्ट नहीं थे कि झारखंड आन्दोलन के विषय में कौन सा निर्णय लिया जाय। कई कठिनाईयाँ थी। कुछ भी स्पष्ट नहीं था।
पर अचानक दिसम्बर 18, 1991 को बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया था, पर स्थिति डाँमाडोल थी और विपक्ष अविस्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा था। बिनोद बाबू के निधन के बाद न सिर्फ बिहार की राजनीति में व्यापक प्रभाव पड़ा, वरन पूरे देश में राजनैतिक हलचल बढ़ गई। झामुमो के छः सांसद थे और वे विपक्ष में बैठे थे। शिबू सोरेन काँग्रेस के नजदीकी माने जाते थे और बिनोद बाबू वामपंथी पृष्ठ भूमि के थे। विपक्ष में उस समय भारतीय जनता पार्टी, जनता दल, वामपंथी पार्टियाँ एवं अन्य कई दल काँग्रेस के विरोध में थे।
बिनोद बाबू की मृत्यु के पश्चात बिहार में राजनैतिक समीकरण गड़बड़ाने लगा था। लालू प्रसाद के लिए परेशानी थी। उसी प्रकार केन्द्र में काग्रेस इस चक्कर में थी कि झामुमो के सांसदों को अपने पक्ष में कर लिया जाय। राजनैतिक शह-मात का खेल शुरू हो गया था।
झारखंड क्षेत्र में न सिर्फ झामुमो समर्थकों, वरन् झारखण्ड नामधारी दलों के साथ-साथ वामपंथियों, शिक्षा-विदों एवं अन्य कई सामजि संगठनों में शोक की लहर दौड़ गई। झारखंड की आम-गरीब जनता उनके निधन से आहत थी ओर किंकर्त्तव्यविमूड़ थी। दूसरी तरफ झारखंड के शोषणकर्त्ता खुश थे। खुले आम जश्न मनाकर अपनि खुशी का इजहकर कर चुके थे। झारखंड आन्दोलन को एक जोरदार झटका बिनोद बाबू के निधन से लगा।
राष्ट्रीय दलों जैसे काँग्रेस पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ वामपंथी दलों ने अपनी सक्रियता झारखंड क्षेत्र में बढ़ानी शुरू कर दी थी। वह समय एक ऐसा समय था जब राजनैतिक महकमें में कई अटकले लगाई जा रही थी।
इससे एक समस्या और उत्पन्न हो गई थी। कई जगहों के विस्थापितों के हजारों मामले बिनोद बाबू विभिन्न कोर्ट-कचहरियों में लड़ रहें थे, उन मामलों में भी ग्रहण लगना शुरू हो गया था। खासकर बोकारो, धनबाद आदि जिलों में भू-अर्जन अधिनियम के तहत हजारों केस बिनोद बाबू ने एक वकील की हैसियत से दायर किए थे, जो उनकी मृत्यु के बाद दूसरे वकीलों द्वारा चलाए जाने के प्रयास भी शुरू हो गये थे। दर्जनों शिक्षण संस्थाओं का भविष्य भी खतरे में पड़ गया था जो उनके द्वारा स्थापित या संचालित थे।
मैं झारखंड आन्दोलन के साथ शुरू से ही जुड़ा हुआ था। तथा अपने पिता बिनोद बिहारी महतो का प्रशंसक रहा था। अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स धनबाद से पूरी करके मैं सुदामडीह कोलियरी में कार्यरत था तथा 1972 में कोलियरी छोड़ दिया था। 1969 के आस पास शिवाजी समाज के आन्दोलनों में तथा अन्य प्रकार के कई कार्यक्रमों में ज्यादे सक्रिय हो जाने के कारण बिनोद बाबू पर कई मुकदमें लादे गये थे। उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था। आपात काल के लागू होने के पहले वे इतने ज्यादे उलझ गये कि उन्हे “मिसा” के तहत 1974 में गिरफ्तार करके कारागार में बंद कर दिया गया। पहले उन्हें भागलपूर सेंट्रल जेल तथा बाद में उन्हें बाँकीपुर पटना सेंट्रल जेल में बंद रखा गया था। मैं घर का बड़ा था। मुझे छोड़कर सभी भाई बहन पढ़ाई कर रहें थे। बड़ी मुश्किल हो गई थी। कोलियरी में मेरा आना-जाना का हो गया। इन्हीं झंझटो से आजिज आकर मैंने कोलियरी से सदा के लिए अलविदा कह दिया। यहीं पर छोटा-मोटा कारोबार करके घर में ही रहने लगा। पिताजी के मुकदमों को पटना हाईकोर्ट सेलेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुझे लड़ना पड़ा। पिताजी के “मिसा” कानून के तहत दायर किया गया केस अपने आप में एक अनूठा केस था जो 1974 के ए0 आइ0 आर0 के सुप्रीम कोर्ट के फेसलों में दर्ज है। इस दौरान मुझे कोर्ट कचहरी तथा जेलों के चक्कर काटने पड़े थे। इस केस में हार जाने के बाद मैंने तय कर लिया कि वकील बनूँगा। 1971 में मैंने लॉ कॉलेज छोटानागपुर, राँची में दाखीला ले लिया था। पर परीक्षा में 1975 में बैठा। इस प्रकार 1977 तक मैं धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग जिलों में झमुमो के आन्दोलन के साथ-साथ जुड़ा रहा।
मैंने 1973 में धनबाद म्यूनिसिपैलटी का चुनाव लड़ा, वार्डो में अपना उम्मीद्वार दिया। बिनोद बाबू, कॉमरेड राय मेरे साथ तो थे, पर उन्होनें इस चुनाव में मुझे अपने ढंग से कार्य करने दिया। नतीजा यह निकला कि मैनें अपने साथियों का बहुमत प्राप्त कर लिया। काँग्रेस के दबंग नेताओं, वी0 पी0 सिन्हा, शंकर दयाल सिंह जैसे दिग्गज नेतओं के प्रतिरोध के बावजूद यह बहुमत हासिल किया था, तथा बिनोद बाबू के कथनानुसार उनके पुराने साथियों सचिन चन्द्र मल्लिक को चैयरमैन तथा हरिहरप्रसाद जी को वाइस चैयरमैन बनाया। 1977 के बाद मैं 1978 में राँची चला आया था, पर राजनीति से अलग नहीं हो सका। राँची जिले में तब झारखंड मुक्ति मोर्चा का कोई संगठन नहीं था। इस समय तक झामुमो का संगठन उत्तरी छोटानागपुर तथा संथाल परगना तक ही सीमित था। दक्षिणी छोटानागपुर में झारखंड नामधारी अन्य दल सक्रिय थे।
मैं श्री इन्द्रनाथ महतो अधिवक्ता, त्रिदीप घोष, बिरसा उराँव, मानवघोष दस्तीदार भाई हॉलेन कुजूर, शिव नन्दन महतो, बिरसा उराँव आदि कुछ गिने चुने लोगों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन राँची में किया। 1980 में हिनू मे हमारे एक साथी एतवा उराँव आदिवासी जमीन बचाने के विवाद में जमीन-माफियाओं के द्वारा मार दिया गया। तब झामुमो के आन्दोलन ने जोर पकड़ा। कई सहकारी समितियों के जमीनों पर हमने हरा झंड़ा गाड़कर उनके कार्यो को रोका। तथा कई जगहों पर विस्थापित आन्दोलन की शुरूआत की।
इसके बाद सिंहभूम जिलों से कई साथी आए एवं मुझसे मिले। इस बीच मैने कई कार्यक्रमों में बिनोद बाबू एवं ए0 के0 राय एवं शिबू सोरेन को शिरकत करवाया। सघनू भगत (बाद में मंत्री) भी पार्टी में शामिल हुए। मेरी सिफारिश पर 1980 में भाई हॉलेन कूजूर को झामुमो तथा मासस ने विधान परिषद् का सदस्य बनवाया। अर्जुन महतो (बाद में विधायक) मेरे कहने पर झामुमो में आए। मैने उन्हें बिनोद बाबू के पास भेज दिया था।
पर धीरे-धीरे मैं वकालत में मशगुल हो गया। पर इससे राजनीति से मेरा सम्बन्ध टूटा नहीं। सक्रिय राजनीति में मेरा दखल का जरूर हो गया। पर फिर भी बिनोद बाबू के चुनाओं मे मैं ही चुनाव प्रभारी हुआ करता और तब क्षेत्र का दौरा करता। आनन्द महतो, कॉमरेड राय को भी चुनावों में क्षेत्र मे जाकर मदद करता। एक फायदा तो वकालत से हो ही गया था। विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग जो मेरे पिताजी से संबंध रखते थे, मेरे पास अपने मुकदमें की पैरवी करने आते। इसके अलावा मेरा आयाम राँची मे रहने के कारण बढ़ गया था। पूरे झारखंड के लोग मेरे पास मुकदमें लेकर आते।
मेरे पिता बिनोद बिहारी महतो की अचानक मृत्यु ने मुझे बड़ी असमंजस की स्थिति मे डाल दिया था। परिस्थिति ऐसी पैदा हो गई कि मुझे अपने सरकारी वकील का पद छोड़कर राजनीति मे वापस आना पड़ा। तेरह वर्षो की कड़ी मेहनत के बाद मै सरकारी वकील बना था, केरियर को बनाया था। भविष्य मे हाईकोर्ट जज के पद पर जा सकता था, पर जहाँ से चला वहीं आकर फिर खड़ा हो गया। एक कैरियर माइनिंग इंजीनियर का छोड़ चुका था तो दूसरा भी छूट गया था। राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई में अक्सर मुद्दे पीछे छूट जाते है। मैं झारखंड आन्दोलन को आगे बढ़ाने तथा पृथक झारंखड राज्य बनाने के मुद्दे के साथ राजनीति में आया था, पर मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि बिनोद बिहारी महतो की मृत्यु के बाद राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का रूप ले लिया था। कॉमरेड ए0 के0 राय तथा शिबू सोरेन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लग गये थे। अलग राज्य का मुद्दा भूला दिया गया। न सिर्फ भूला दिया गया था, वरन् इसके विरूद्ध कॉमरेड राय तथा शिबू सोरेन दोनों ने मुहिम छेड़ दिया।
इस महत्वाकांक्षा की लड़ाई में काँग्रेस ने शिबू सोरेन को पटाकर बिहार से लालू प्रसाद की सरकार को गिराने का प्रयास शुरू कर दिया। पुनः काँग्रेस को बिहार की गद्दी में बैठने के लिए शिबू सोरेन सक्रिय हो गये।
केन्द्र में काँग्रेस शिबू सोरेन के सांसदों को अपने पक्ष में करने का प्रयास करने लगी

Thursday, 22 December 2016

विधायक राजकिशोर महतो ने ब्यान दिया

18 Dec 2016 का प्रभात खबर जिसमे आजसु पार्टी के टुंडी विधायक राजकिशोर महतो ने ब्यान दिया कि बिनोद बिहारी महतो ने अकले धनबाद-बोकारो मे 40000 जमीन से जुड़ा केस लड़ा जो एक विश्व रिकार्ड है ....
और उनके बेटे खुद विधायक होकर सरकार मे रहते हुए cnt spt act का गलत संसोधन सरकार ने कर दिया और विधायक जी के मुँह से चुँ तक नही निकली ये है बिनोद बिहारी महतो के सुपुत्र और आजसु पार्टी के सबसे पढ़े-लिखे नेता ये लोग सरकार के खिलाफ एक छोटा सा ब्यान देने की हिम्मत नही है और चले है बिनोद बाबु के विचारो को लेकर समाज करने ।

आदिवासी कुड़मी समाज का आंदोलन अब टुंडी विधानसभा मे होगी जिसमे शक्ति चौक धनबाद से शव यात्रा निकाल कर बिनोद चौक धनबाद मे जलाया जाऐगा ।
ARBIND Mahto: President - Adibasi Kudmi Samajh Dhanbad

वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया

वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया,
किस्मत हमारी फुटी थी जो अपनों ने ही उनका साथ निभाया !

ये कैसी आंधी है जो बिन वर्षात के चला आया,
कुड़मियत  के बहाने
वोट बैंक और कुड़मी को ही निशाना बनाया !

शासक बना झारखंड राज्य का, अक्खा झारखंड लूट गया...
तरस गये हम रोजी-रोजगार को फिर भी हमें न होश आया !

बाबू के सपनों का झारखंड अब राजनीतिक का मंच बना, रोजी-रोजगार, राशन-जमीन बाहरियों का रंगमंच बना !

शर्म न आई राजनीतिक करने में पर बढ़ा उनका अब मान-सम्मान,
लुटकर आदिवासी-मुलवासी के जान और जमीन... कर आये वो गंगा स्नान  !

लुटने की कोई कसर न छोड़ी अभी भी प्रयास जारी है,
सत्ता में रहकर निर्लज होकर कहते झारखंड राज्य हमारी है।

खाली पड़े रसोई के डिब्बे और
खेत-जमीन भी ठगा गया, उम्मीद थी कुछ देंगे साहब पर वो भाषण दे कर चला गया !

समाज और राज्य की बिकट घड़ी में झारखंडीयों को कुछ रास न आया,
ये कैसी सित लहर है जो विनोद बाबू के स्टेच्यू पे सवार आया !!

नोट : ये लेख महामहिम सुदेश महतो जी से कोई संबंध नहीं है  !

Dayamay

वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया: Binod Bihari Mahto
वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया,
किस्मत हमारी फुटी थी जो अपनों ने ही उनका साथ निभाया !
ये कैसी आंधी है जो बिन वर्षात के चला आया,
कुड़मियत  के बहाने
वोट बैंक और कुड़मी को ही निशाना बनाया !
शासक बना झारखंड राज्य का, अक्खा झारखंड लूट गया...
तरस गये हम रोजी-रोजगार को फिर भी हमें न होश आया !
बाबू के सपनों का झारखंड अब राजनीतिक का मंच बना, रोजी-रोजगार, राशन-जमीन बाहरियों का रंगमंच बना !
शर्म न आई राजनीतिक करने में पर बढ़ा उनका अब मान-सम्मान,
लुटकर आदिवासी-मुलवासी के जान और जमीन... कर आये वो गंगा स्नान  !
लुटने की कोई कसर न छोड़ी अभी भी प्रयास जारी है,
सत्ता में रहकर निर्लज होकर कहते झारखंड राज्य हमारी है।
खाली पड़े रसोई के डिब्बे और
खेत-जमीन भी ठगा गया, उम्मीद थी कुछ देंगे साहब पर वो भाषण दे कर चला गया !
समाज और राज्य की बिकट घड़ी में झारखंडीयों को कुछ रास न आया,
ये कैसी सित लहर है जो विनोद बाबू के स्टेच्यू पे सवार आया !!
नोट : ये लेख महामहिम सुदेश महतो जी से कोई संबंध नहीं है  !
Dayamay

Wednesday, 21 December 2016

बीसीसीएल की मुकून्दा प्रोजेक्ट

बीसीसीएल की मुकून्दा प्रोजेक्ट ।इसके लिए 1771 एकड जमीन अधिग्रहित की गई थी ।मुआवजे के रूप मे 12रू80पैसा प्रती डिसमिल के हिसाब से मुआवजा दिया गया था और 271 लोगो को नोकरी दी गई थी ।बीसीसीएल के हिसाब से ही देखा जाए तो प्रती दो एकड पर एक नोकरी के हिसाब से ही अगर नोकरी दी जाए तो कम से कम 876लोगो को नोकरी मिलनी चाहिए थी पर मिली मात्र 271 लोगो को ।बाकि नोकरी के मामले मे बीसीसीएल चुप है ।समझ सकते है देश के बाकि राज्य मे भूमिअधिग्रहन होने पर जहा लाखो रूपये प्रति डिसमिल के दर से मुआवजे का भुगतान किया जाता है वही झारखंड की जमीन अधिग्रहण क
पर मुआवजा 12रू 80पैसा ।समझ सकते है 12रू किलो आलू नही मिलती है और बीसीसीएल 12रू डिसमिल जमीन ले रही है ।नोकरी भी नाम मात्र की ।बीसीसीएल बिहारी अतिक्रमणकारी के पुनर्वास पर जहा अरबो रू खर्च कर रही है वही असली विस्थापित के लिए कोई पुनर्वास की आवश्यकता महसूस नही करती है ।सरकार, अफसर, सभी माननीय नेतागण चुप है ।इस  अधिग्रहित जमीन पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य नही हुआ है क्योकि परियोजना ही रद्द हो गई है ।नयी भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अनुसार अगर भू-अधिग्रहण के पाच साल के भीतर निर्माण कार्य शुरू नही होने पर  अधिग्रहित जमीन मूल रैयत को वापस करने का प्रावधान है ।पर बीसीसीएल टाल मटोल कर रही है ।क्या बीसीसीएल आपने आप को कानून  और संविधान से भी उपर समझती है?
Rakesh Mahato

झारखंड: भाजपा की जमीन खिसका सकते हैं रघुवर दास के फैसले

झारखंड: भाजपा की जमीन खिसका सकते हैं रघुवर दास के फैसले
झारखंड की आदिवासी आबादी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाजपा सरकार उनकी जमीन हड़पकर कारपोरेट घरानों को सौंपना चाह रही है. यह संदेश भाजपा विरोधी राजनीतिक ताकतों ने पहुंचाया है.
उन्हें ऐसा करने का मौका स्वयं राज्य सरकार ने 03 मई 2016 को दे दिया था. तब सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टिनेसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टिनेसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में संशोधन का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर किया गया.
सरकार की नीयत पर शक
ये कानून राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को बाहरी लोगों के लालच से बचाने के लिए बनाए गए थे.
इसके तहत जमीन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी है.
यह कानून संविधान की नौंवी सूची में शामिल है. यानी इसकी समीक्षा नहीं हो सकती. बिना व्यापक विचार-विमर्श के ऐसे कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रयास सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है.
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी बिना किसी संकोच के 28 जून 2016 को अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे सलाह के लिए केंद्र को लौटा दिया. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 06 सितंबर को राष्ट्रपति से इसे मंजूर न करने की सिफारिश की.
बावजूद इसके, 23 नवंबर-16 को विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों को मात्र तीन मिनट में विधानसभा से पारित करा कर अपनी मंशा और साफ कर दी.
जबरदस्त नाराजगी
इसके बाद आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं. गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है. आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है.
असंतोष की एक झलक 25 नवंबर को संशोधनों के खिलाफ 'झारखंड बंद' के दौरान दिखा जब 10 से ज्यादा वाहन जला दिए गए और करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया.
आदिवासी बहुल संताल में तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और उनपर तीर से हमले किए गए. दुमका में कॉलेज हॉस्टल से करीब 25 हजार तीर, धनुष व परंपरागत हथियार जब्त किए गए.
कैसे बना था यह कानून
सीएनटी उस समय अस्तित्व में आया था जब तमाम तरह के दमनात्मक हथकंडों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि इस इलाके को अपने अधीन बनाए रखना मुश्किल है.
इसलिए 'एक हाथ दो एक हाथ लो' की नीति पर अंग्रेज हुकूमत ने बिरसा के शहीद होने के महज आठ साल के भीतर इस विशेष कानून के तहत स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान किए. बदले में यह आशा की गई कि आदिवासी अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार करेंगे.
क्यों हो रहा है विरोध?
एक्ट में संशोधन आदिवासियों के हित में होने के सरकारी दावे के बावजूद विरोध की वजह को कानून के विशेषज्ञ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने विस्तार से समझाया.
क्षेत्र विशेष के लिए बनाए गए इस खास सीएनटी एक्ट के सेक्शन 21, सेक्शन-49(1)(2) व सेक्शन 71(ए) में और इसी के अनुरूप एसपीटी के सेक्शन-13 संशोधन किए गए हैं. वर्तमान कानून आदिवासियों की कृषियोग्य भूमि पर ही लागू है.
सेक्शन-21 में संशोधन के द्वारा उसके गैरकृषि इस्तेमाल को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को दी गई है. कहा गया है कि सीएनटी के लागू रहने के बावजूद सरकार जमीन के गैरकृषि उपयोग के लिए नियम बनाएगी.
समय-समय पर राज्य सरकार इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी. यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार गैरकृषि लगान थोप सकती है.
संशोधन विरोधी आशंका जता रहे हैं कि ऐसा होने पर सरकारों को जमीन का उपयोग बदलने की असीमित ताकत मिल जाएगी. एकबार ऐसा हो गया तो उक्त जमीन सीएनटी-एसपीटी एक्ट से बाहर हो जाएगी. ऐसा होते ही आदिवासियों को बेदखल करना आसान हो जाएगा.
पूर्व में हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से ऐसे कई फैसले आए हैं जिनमें उपयोग बदल जाने के बाद उसे सीएनटी-एसपीटी के तहत प्राप्त विशेष सुरक्षा से बाहर माना गया है.
गले नहीं उतर रहा सरकारी दावा
इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए सरकार ने बाद में यह प्रोविजन जोड़ दिया है कि उपयोग बदलने के बावजूद ऑनरशिप जमीन मालिक की ही रहेगी. पर, यह कैसे संभव होगा इसे बताया नहीं किया गया है.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तो इसे सीधा-सीधा सरकार का झूठ मानते हैं. कहते हैं ' यह भाजपा का वैसा ही झूठ है जैसा कश्मीर में धारा-370 हटाने और बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए वह बोलती रही है. मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं भी वहीं से निकला हूं'.
कात्यायन तो इसे महज नौकरशाही की बेवकूफी मानते हैं. कहते हैं कि 'चूंकि ऑनरशिपझारखंड: भाजपा की जमीन खिसका सकते हैं रघुवर दास के फैसले
झारखंड की आदिवासी आबादी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाजपा सरकार उनकी जमीन हड़पकर कारपोरेट घरानों को सौंपना चाह रही है. यह संदेश भाजपा विरोधी राजनीतिक ताकतों ने पहुंचाया है.
उन्हें ऐसा करने का मौका स्वयं राज्य सरकार ने 03 मई 2016 को दे दिया था. तब सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टिनेसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टिनेसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में संशोधन का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर किया गया.
सरकार की नीयत पर शक
ये कानून राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को बाहरी लोगों के लालच से बचाने के लिए बनाए गए थे.
इसके तहत जमीन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी है.
यह कानून संविधान की नौंवी सूची में शामिल है. यानी इसकी समीक्षा नहीं हो सकती. बिना व्यापक विचार-विमर्श के ऐसे कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रयास सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है.
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी बिना किसी संकोच के 28 जून 2016 को अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे सलाह के लिए केंद्र को लौटा दिया. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 06 सितंबर को राष्ट्रपति से इसे मंजूर न करने की सिफारिश की.
बावजूद इसके, 23 नवंबर-16 को विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों को मात्र तीन मिनट में विधानसभा से पारित करा कर अपनी मंशा और साफ कर दी.
जबरदस्त नाराजगी
इसके बाद आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं. गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है. आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है.
असंतोष की एक झलक 25 नवंबर को संशोधनों के खिलाफ 'झारखंड बंद' के दौरान दिखा जब 10 से ज्यादा वाहन जला दिए गए और करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया.
आदिवासी बहुल संताल में तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और उनपर तीर से हमले किए गए. दुमका में कॉलेज हॉस्टल से करीब 25 हजार तीर, धनुष व परंपरागत हथियार जब्त किए गए.
कैसे बना था यह कानून
सीएनटी उस समय अस्तित्व में आया था जब तमाम तरह के दमनात्मक हथकंडों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि इस इलाके को अपने अधीन बनाए रखना मुश्किल है.
इसलिए 'एक हाथ दो एक हाथ लो' की नीति पर अंग्रेज हुकूमत ने बिरसा के शहीद होने के महज आठ साल के भीतर इस विशेष कानून के तहत स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान किए. बदले में यह आशा की गई कि आदिवासी अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार करेंगे.
क्यों हो रहा है विरोध?
एक्ट में संशोधन आदिवासियों के हित में होने के सरकारी दावे के बावजूद विरोध की वजह को कानून के विशेषज्ञ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने विस्तार से समझाया.
क्षेत्र विशेष के लिए बनाए गए इस खास सीएनटी एक्ट के सेक्शन 21, सेक्शन-49(1)(2) व सेक्शन 71(ए) में और इसी के अनुरूप एसपीटी के सेक्शन-13 संशोधन किए गए हैं. वर्तमान कानून आदिवासियों की कृषियोग्य भूमि पर ही लागू है.
सेक्शन-21 में संशोधन के द्वारा उसके गैरकृषि इस्तेमाल को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को दी गई है. कहा गया है कि सीएनटी के लागू रहने के बावजूद सरकार जमीन के गैरकृषि उपयोग के लिए नियम बनाएगी.
समय-समय पर राज्य सरकार इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी. यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार गैरकृषि लगान थोप सकती है.
संशोधन विरोधी आशंका जता रहे हैं कि ऐसा होने पर सरकारों को जमीन का उपयोग बदलने की असीमित ताकत मिल जाएगी. एकबार ऐसा हो गया तो उक्त जमीन सीएनटी-एसपीटी एक्ट से बाहर हो जाएगी. ऐसा होते ही आदिवासियों को बेदखल करना आसान हो जाएगा.
पूर्व में हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से ऐसे कई फैसले आए हैं जिनमें उपयोग बदल जाने के बाद उसे सीएनटी-एसपीटी के तहत प्राप्त विशेष सुरक्षा से बाहर माना गया है.
गले नहीं उतर रहा सरकारी दावा
इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए सरकार ने बाद में यह प्रोविजन जोड़ दिया है कि उपयोग बदलने के बावजूद ऑनरशिप जमीन मालिक की ही रहेगी. पर, यह कैसे संभव होगा इसे बताया नहीं किया गया है.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तो इसे सीधा-सीधा सरकार का झूठ मानते हैं. कहते हैं ' यह भाजपा का वैसा ही झूठ है जैसा कश्मीर में धारा-370 हटाने और बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए वह बोलती रही है. मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं भी वहीं से निकला हूं'.
कात्यायन तो इसे महज नौकरशाही की बेवकूफी मानते हैं. कहते हैं कि 'चूंकि ऑनरशिप....।

Tuesday, 20 December 2016

राकेश दा,जो आप सम्मानित होने नही गय

धन्यबाद राकेश दा,जो आप सम्मानित होने नही गये,वैसे भी आप समाज के सम्मानित ब्यक्ति है ,और जिस ब्यक्ति से सम्मानित होना था,वो ब्यक्ति 16 साल से कहाँ थे,जब वो सरकार में उपमुख्यमंत्री थे तब हमारे बिनोद बाबू याद नही आये ।और अभी भी सीएनटी और एसपीटी के मामले में सरकार की दलाली कर रहे है।

Dhanbad:18-12-2016
बलियापुर मे सुदेश महतो द्वारा बिनोद जन पंचायत पुरी तरह असफल साबित हुआ इसमे धनबाद के गिने-चुने लोगो ने ही भाग लिया अपनी इज्जत को बचाने के लिए पूरूलिया बंगाल से 32 बसो अथवा बुलेरो ,स्कारपियो मे अजित महतो द्वारा लोगो को सभा मे बलियापुर लाया गया ।
बंगाल के कुछ लोगो से पुछने पर यह पुरी तरह खुलकर बताया कि आजसु पार्टी की इज्जत दाव पे लगी है सबको जाना होगा प्रतिव्यक्ति को 200 रूपये भी दिया गया है इस सभा मे आने के लिए ।
अजीत महतो द्वारा आज  पुरूलिया से लोगो को ला कर ये प्रमाणित कर दिया कि सुदेश महतो अजीत महतो के कंधे पर समाज की बात करके झारखंड मे राजनिति कर रहे है 
साथ ही झारखंड के ज्वलंत मुद्दे स्थानिय निति  cnt spt act के मुद्दे को दबाने के लिए कुड़मी का st वाला मुद्दे पर समाज को भटकाया जा रहा है ।


स्व0 बिनोद बाबु को समर्पित गीत

"स्व0 बिनोद बाबु को समर्पित"
..........गीत.......
बिनोद बाबूक बातें, शिक्षित होवा घारें-घारें ।
मूरुख रहिया ना आर केउ,
ना त करभे फेउ-फेउ ।
करल धरल जीतो, सोभे पुराय ।।
हाथेँ धारा लाठि, निजें करा रखवाली,
छाड़ा दलालेकर संग,
ना त करतोउ बड़ि तंग ।
अरजल धन टा देतो, सोभें पुराय ।।
करा संगे युगति,
बइसा एक खाटी ।
अलग रहा ना आर केउ,
ना त करभे फेउ-फेउ ,
"काली" चरनेक धीरजाय, घुन: लागि जाय ।।
'
स्व0 बिनोद बाबु अमर रहे ।
स्व0 बिनोद बिहारी महतो के चरणों में शत शत नमन ।

Saturday, 17 December 2016

"बिनोद बाबु" 
जी हां, झारखंड के जनक बिनोद बिहारी महतो


"बिनोद बाबु"
जी हां, झारखंड के जनक बिनोद बिहारी महतो को यहां की जनता इसी नाम से जानती-मानती है।
कोयलांचल, लोहांचल की धरती मे यह नाम पिछले कई दशकों से सर्वाधिक आदर व सम्मान सूचक नाम रहा है। इस क्षेत्र मे बिनोद बाबू का वही स्थान है जो रांची क्षेत्र मे बिरसा मुंडा का।

साधारण गरीब कुड़मि किसान परिवार मे जन्मे बिनोद बिहारी महतो धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड के बड़ादाहा गांव के माहिंदी महतो  व मंदाकिनी माहताइन के एकलौते पुत्र थे। 23सितंबर 1921मे इनका जन्म हुआ। बचपन से ही दृढ़-इच्छाशक्ति के धनी रहे बिनोद बाबु गांव से जंगल के रास्ते नित्य 15 किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने इलाके के पहले मैट्रिक पास करने वाले छात्र थे।ये रास्ता चलते हुए "सोहराई " गीतों के सुर मे पाठ जोर जोर से याद किया करते थे जिसे सुनकर राहगीर भौंचक हो उन्हे ताकते रह जाते। इनकी मां घर मे उगाई सब्जियां बेच कर इनकी पढ़ाई का खर्च वहन करती थी। आगे चलकर उन्होने वकालत पूरी की और धनबाद के उसी कोर्ट मे पहुंचे जहां एक समय किरानी रहते वे एक वकील से तिरस्कृत हुए थे।

एक वकील के तौर पर उन्होने अपने क्षेत्र के जनजीवन की कठिनाईयों त्रासदियों व सामंतवादी अत्याचारों को तीव्रता से महसूस किया व इन्हे इनसे मुक्त होने की दिशा मे अपना जीवन अर्पित करने की ठान ली। विशेषकर बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना के दौरान विस्थापितों पर हुए अत्याचारों से वे इतने मर्माहत हुए कि इनकी हक की लड़ाई लड़ना ही अपने जीवन का परम उद्देश्य बना लिया। ऐसे महत्वपुर्ण कालक्रम मे उनसे ए के राय और शिबु सोरेन जुड़ गये। यह 1966- 67 का वर्ष था जिसने झारखंड आंदोलन की दिशा- दशा ही तय कर दी थी। इससे पुर्व शिबू सोरेन "सोनोत-संताल समाज सूधार समिति" , एके राय सिंदरी मे  "मजदूर युनियन" और बिनोद बाबु "शिवाजी समाज" आंदोलन द्वारा  जनप्रिय छवि बना चुके थे परंतु क्षेत्र की राजनीति मे इन तीनो की धमक अबतक नही हो पायी थी और कांग्रेस की सामंतवादी राजनीति का प्रभुत्व  पुरे कोयलांचल पर हावी था। इधर बिनोद बाबु गांव गांव मे अपनी ठेठ शैली मे जनअदालत लगाकर समाज के सताये गये लोगों को न्याय दिलाने की मुहिम मे रत थे।उनकी वाणी मे गरज और जोश ने क्रांतिकारी सामाजिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी और आततायी दबंग  उनके नाम सुनते ही सिहरने लगे।उन्होने यह बड़ी तीव्रता से महसूस कर लिया था कि  सरकारी न्याय व्यवस्था से इतर जनअदालतो के माध्यम से अपढ़ गरीब ग्रामीणो को न्याय दिलाने की पहल करनी होगी और साथ ही इन्हे अबतक रहे अशिक्षा के घोर अंधकार से बाहर निकालना होगा। शायद यही कारण था कि कभी किसी मंदिर मस्जिद निर्माण हेतू एकपैसा भी चंदा नही देने वाले बिनोद बाबू ने क्षेत्र मे स्कूल कालेज खोलने हेतू मुक्त हस्त धन-जमीन दान किया था। उनके द्वारा धनबाद-पुरुलिया-बोकारो-गिरीडीह क्षेत्र के अनेकों सुदूरवर्ती गांवो मे खुले स्कूल व कालेजो मे उनके सपनो को पंख लग रहे है। झारखंड आंदोलन के पुरोधा बनकर इन्होने न सिर्फ अलग राज्य निर्माण की नींव मजबूत की बल्कि शिक्षा आंदोलन के द्वारा सदियो से पिछड़े क्षेत्रो को राष्ट्र की मुख्यधारा मे लाने का प्रशंसनीय काम किया। उनका "पढ़ो और लड़ो" नारा सदियो से दमित जनजीवन के बीच धूमकेतू बनकर पुरे झारखंड के जनमानस मे कौंधने लगा था। परंतु यह झारखंड के लिए अतिशय दूर्भाग्य रहा कि अलग राज्य आंदोलन को मंझधार मे छोड़ अचानक उन्होने अलविदा ले ली। 18 दिसंबर1991 को दिल्ली संसद भवन मे अचानक उनकी तबियत बिगड़ जाने और थोड़ी ही देर पश्चात हुए उनके निधन से पुरा झारखंड रो पड़ा। परंतु उनका सपना अंततः पुरा हुआ और दशकों से चले आंदोलन ने झारखंडवासियों को 15नवंबर2000 मे नये राज्य की सौगात दी। झारखंड को औपनिवेशिक लूट से बचाने, झारखंडी सभ्यता संस्कृति को अक्षुण्ण रखने व झारखंडी  भाषाओं को प्रतिष्ठित करने ने वे जीवन पर्यंत जुटे रहे। वे ग्रामीण जनो से हमेशा अपनी मातृभाषा कुड़मालि मे ही बोलते व अपनी भाषा का सम्मान करने को प्रेरित करते थे।

आज भी उनके विचारो और उनकी छवि के बिना कोई झारखंड नामधारी पार्टी की राजनीति नही चल सकती। वे सच्चे अर्थों मे झारखंड के जनक थे, है और रहेंगें।सधन्यवाद-

महादेव महतो डुंगरिआर
Pic - Ajayshankar Mahato