Sunday, 25 December 2016
Thursday, 22 December 2016
18 Dec 2016 का प्रभात खबर जिसमे आजसु पार्टी के टुंडी विधायक राजकिशोर महतो ने ब्यान दिया कि बिनोद बिहारी महतो ने अकले धनबाद-बोकारो मे 40000 जमीन से जुड़ा केस लड़ा जो एक विश्व रिकार्ड है ....
और उनके बेटे खुद विधायक होकर सरकार मे रहते हुए cnt spt act का गलत संसोधन सरकार ने कर दिया और विधायक जी के मुँह से चुँ तक नही निकली ये है बिनोद बिहारी महतो के सुपुत्र और आजसु पार्टी के सबसे पढ़े-लिखे नेता ये लोग सरकार के खिलाफ एक छोटा सा ब्यान देने की हिम्मत नही है और चले है बिनोद बाबु के विचारो को लेकर समाज करने ।
आदिवासी कुड़मी समाज का आंदोलन अब टुंडी विधानसभा मे होगी जिसमे शक्ति चौक धनबाद से शव यात्रा निकाल कर बिनोद चौक धनबाद मे जलाया जाऐगा ।
ARBIND Mahto: President - Adibasi Kudmi Samajh Dhanbad
वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया,
किस्मत हमारी फुटी थी जो अपनों ने ही उनका साथ निभाया !
ये कैसी आंधी है जो बिन वर्षात के चला आया,
कुड़मियत के बहाने
वोट बैंक और कुड़मी को ही निशाना बनाया !
शासक बना झारखंड राज्य का, अक्खा झारखंड लूट गया...
तरस गये हम रोजी-रोजगार को फिर भी हमें न होश आया !
बाबू के सपनों का झारखंड अब राजनीतिक का मंच बना, रोजी-रोजगार, राशन-जमीन बाहरियों का रंगमंच बना !
शर्म न आई राजनीतिक करने में पर बढ़ा उनका अब मान-सम्मान,
लुटकर आदिवासी-मुलवासी के जान और जमीन... कर आये वो गंगा स्नान !
लुटने की कोई कसर न छोड़ी अभी भी प्रयास जारी है,
सत्ता में रहकर निर्लज होकर कहते झारखंड राज्य हमारी है।
खाली पड़े रसोई के डिब्बे और
खेत-जमीन भी ठगा गया, उम्मीद थी कुछ देंगे साहब पर वो भाषण दे कर चला गया !
समाज और राज्य की बिकट घड़ी में झारखंडीयों को कुछ रास न आया,
ये कैसी सित लहर है जो विनोद बाबू के स्टेच्यू पे सवार आया !!
नोट : ये लेख महामहिम सुदेश महतो जी से कोई संबंध नहीं है !
Dayamay
किस्मत हमारी फुटी थी जो अपनों ने ही उनका साथ निभाया !
कुड़मियत के बहाने
वोट बैंक और कुड़मी को ही निशाना बनाया !
तरस गये हम रोजी-रोजगार को फिर भी हमें न होश आया !
लुटकर आदिवासी-मुलवासी के जान और जमीन... कर आये वो गंगा स्नान !
सत्ता में रहकर निर्लज होकर कहते झारखंड राज्य हमारी है।
खेत-जमीन भी ठगा गया, उम्मीद थी कुछ देंगे साहब पर वो भाषण दे कर चला गया !
ये कैसी सित लहर है जो विनोद बाबू के स्टेच्यू पे सवार आया !!
Wednesday, 21 December 2016
बीसीसीएल की मुकून्दा प्रोजेक्ट ।इसके लिए 1771 एकड जमीन अधिग्रहित की गई थी ।मुआवजे के रूप मे 12रू80पैसा प्रती डिसमिल के हिसाब से मुआवजा दिया गया था और 271 लोगो को नोकरी दी गई थी ।बीसीसीएल के हिसाब से ही देखा जाए तो प्रती दो एकड पर एक नोकरी के हिसाब से ही अगर नोकरी दी जाए तो कम से कम 876लोगो को नोकरी मिलनी चाहिए थी पर मिली मात्र 271 लोगो को ।बाकि नोकरी के मामले मे बीसीसीएल चुप है ।समझ सकते है देश के बाकि राज्य मे भूमिअधिग्रहन होने पर जहा लाखो रूपये प्रति डिसमिल के दर से मुआवजे का भुगतान किया जाता है वही झारखंड की जमीन अधिग्रहण क
पर मुआवजा 12रू 80पैसा ।समझ सकते है 12रू किलो आलू नही मिलती है और बीसीसीएल 12रू डिसमिल जमीन ले रही है ।नोकरी भी नाम मात्र की ।बीसीसीएल बिहारी अतिक्रमणकारी के पुनर्वास पर जहा अरबो रू खर्च कर रही है वही असली विस्थापित के लिए कोई पुनर्वास की आवश्यकता महसूस नही करती है ।सरकार, अफसर, सभी माननीय नेतागण चुप है ।इस अधिग्रहित जमीन पर किसी भी प्रकार का कोई कार्य नही हुआ है क्योकि परियोजना ही रद्द हो गई है ।नयी भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अनुसार अगर भू-अधिग्रहण के पाच साल के भीतर निर्माण कार्य शुरू नही होने पर अधिग्रहित जमीन मूल रैयत को वापस करने का प्रावधान है ।पर बीसीसीएल टाल मटोल कर रही है ।क्या बीसीसीएल आपने आप को कानून और संविधान से भी उपर समझती है?
Rakesh Mahato
झारखंड: भाजपा की जमीन खिसका सकते हैं रघुवर दास के फैसले
झारखंड की आदिवासी आबादी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाजपा सरकार उनकी जमीन हड़पकर कारपोरेट घरानों को सौंपना चाह रही है. यह संदेश भाजपा विरोधी राजनीतिक ताकतों ने पहुंचाया है.
उन्हें ऐसा करने का मौका स्वयं राज्य सरकार ने 03 मई 2016 को दे दिया था. तब सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टिनेसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टिनेसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में संशोधन का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर किया गया.
सरकार की नीयत पर शक
ये कानून राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को बाहरी लोगों के लालच से बचाने के लिए बनाए गए थे.
इसके तहत जमीन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी है.
यह कानून संविधान की नौंवी सूची में शामिल है. यानी इसकी समीक्षा नहीं हो सकती. बिना व्यापक विचार-विमर्श के ऐसे कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रयास सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है.
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी बिना किसी संकोच के 28 जून 2016 को अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे सलाह के लिए केंद्र को लौटा दिया. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 06 सितंबर को राष्ट्रपति से इसे मंजूर न करने की सिफारिश की.
बावजूद इसके, 23 नवंबर-16 को विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों को मात्र तीन मिनट में विधानसभा से पारित करा कर अपनी मंशा और साफ कर दी.
जबरदस्त नाराजगी
इसके बाद आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं. गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है. आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है.
असंतोष की एक झलक 25 नवंबर को संशोधनों के खिलाफ 'झारखंड बंद' के दौरान दिखा जब 10 से ज्यादा वाहन जला दिए गए और करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया.
आदिवासी बहुल संताल में तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और उनपर तीर से हमले किए गए. दुमका में कॉलेज हॉस्टल से करीब 25 हजार तीर, धनुष व परंपरागत हथियार जब्त किए गए.
कैसे बना था यह कानून
सीएनटी उस समय अस्तित्व में आया था जब तमाम तरह के दमनात्मक हथकंडों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि इस इलाके को अपने अधीन बनाए रखना मुश्किल है.
इसलिए 'एक हाथ दो एक हाथ लो' की नीति पर अंग्रेज हुकूमत ने बिरसा के शहीद होने के महज आठ साल के भीतर इस विशेष कानून के तहत स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान किए. बदले में यह आशा की गई कि आदिवासी अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार करेंगे.
क्यों हो रहा है विरोध?
एक्ट में संशोधन आदिवासियों के हित में होने के सरकारी दावे के बावजूद विरोध की वजह को कानून के विशेषज्ञ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने विस्तार से समझाया.
क्षेत्र विशेष के लिए बनाए गए इस खास सीएनटी एक्ट के सेक्शन 21, सेक्शन-49(1)(2) व सेक्शन 71(ए) में और इसी के अनुरूप एसपीटी के सेक्शन-13 संशोधन किए गए हैं. वर्तमान कानून आदिवासियों की कृषियोग्य भूमि पर ही लागू है.
सेक्शन-21 में संशोधन के द्वारा उसके गैरकृषि इस्तेमाल को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को दी गई है. कहा गया है कि सीएनटी के लागू रहने के बावजूद सरकार जमीन के गैरकृषि उपयोग के लिए नियम बनाएगी.
समय-समय पर राज्य सरकार इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी. यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार गैरकृषि लगान थोप सकती है.
संशोधन विरोधी आशंका जता रहे हैं कि ऐसा होने पर सरकारों को जमीन का उपयोग बदलने की असीमित ताकत मिल जाएगी. एकबार ऐसा हो गया तो उक्त जमीन सीएनटी-एसपीटी एक्ट से बाहर हो जाएगी. ऐसा होते ही आदिवासियों को बेदखल करना आसान हो जाएगा.
पूर्व में हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से ऐसे कई फैसले आए हैं जिनमें उपयोग बदल जाने के बाद उसे सीएनटी-एसपीटी के तहत प्राप्त विशेष सुरक्षा से बाहर माना गया है.
गले नहीं उतर रहा सरकारी दावा
इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए सरकार ने बाद में यह प्रोविजन जोड़ दिया है कि उपयोग बदलने के बावजूद ऑनरशिप जमीन मालिक की ही रहेगी. पर, यह कैसे संभव होगा इसे बताया नहीं किया गया है.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तो इसे सीधा-सीधा सरकार का झूठ मानते हैं. कहते हैं ' यह भाजपा का वैसा ही झूठ है जैसा कश्मीर में धारा-370 हटाने और बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए वह बोलती रही है. मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं भी वहीं से निकला हूं'.
कात्यायन तो इसे महज नौकरशाही की बेवकूफी मानते हैं. कहते हैं कि 'चूंकि ऑनरशिपझारखंड: भाजपा की जमीन खिसका सकते हैं रघुवर दास के फैसले
झारखंड की आदिवासी आबादी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाजपा सरकार उनकी जमीन हड़पकर कारपोरेट घरानों को सौंपना चाह रही है. यह संदेश भाजपा विरोधी राजनीतिक ताकतों ने पहुंचाया है.
उन्हें ऐसा करने का मौका स्वयं राज्य सरकार ने 03 मई 2016 को दे दिया था. तब सौ साल से ज्यादा पुराने कानून छोटानागपुर टिनेसी एक्ट-1908 (सीएनटी) और संथाल परगना टिनेसी (सप्लिमेंटरी) एक्ट-1949 (एसपीटी) में संशोधन का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर किया गया.
सरकार की नीयत पर शक
ये कानून राज्य की अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को बाहरी लोगों के लालच से बचाने के लिए बनाए गए थे.
इसके तहत जमीन खरीद-फरोख्त पर पाबंदी है.
यह कानून संविधान की नौंवी सूची में शामिल है. यानी इसकी समीक्षा नहीं हो सकती. बिना व्यापक विचार-विमर्श के ऐसे कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रयास सरकार की नीयत पर शक पैदा करता है.
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने भी बिना किसी संकोच के 28 जून 2016 को अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे सलाह के लिए केंद्र को लौटा दिया. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने 06 सितंबर को राष्ट्रपति से इसे मंजूर न करने की सिफारिश की.
बावजूद इसके, 23 नवंबर-16 को विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों को मात्र तीन मिनट में विधानसभा से पारित करा कर अपनी मंशा और साफ कर दी.
जबरदस्त नाराजगी
इसके बाद आदिवासी गांवों में फिर से विद्रोह के नगाड़े बजने लगे हैं. गोष्ठियां हो रही हैं. पूर्वजों के बलिदान को याद किया जा रहा है. आदी विद्रोही तिलका मांझी (1750-85) और वीर बिरसा मुंडा (1875-1900) से लेकर अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले शिबू सोरेन तक की गाथाएं सुनाई जा रही है.
असंतोष की एक झलक 25 नवंबर को संशोधनों के खिलाफ 'झारखंड बंद' के दौरान दिखा जब 10 से ज्यादा वाहन जला दिए गए और करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया.
आदिवासी बहुल संताल में तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी और उनपर तीर से हमले किए गए. दुमका में कॉलेज हॉस्टल से करीब 25 हजार तीर, धनुष व परंपरागत हथियार जब्त किए गए.
कैसे बना था यह कानून
सीएनटी उस समय अस्तित्व में आया था जब तमाम तरह के दमनात्मक हथकंडों के बाद अंग्रेजों ने मान लिया था कि इस इलाके को अपने अधीन बनाए रखना मुश्किल है.
इसलिए 'एक हाथ दो एक हाथ लो' की नीति पर अंग्रेज हुकूमत ने बिरसा के शहीद होने के महज आठ साल के भीतर इस विशेष कानून के तहत स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान किए. बदले में यह आशा की गई कि आदिवासी अंग्रेजों की हुकूमत स्वीकार करेंगे.
क्यों हो रहा है विरोध?
एक्ट में संशोधन आदिवासियों के हित में होने के सरकारी दावे के बावजूद विरोध की वजह को कानून के विशेषज्ञ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने विस्तार से समझाया.
क्षेत्र विशेष के लिए बनाए गए इस खास सीएनटी एक्ट के सेक्शन 21, सेक्शन-49(1)(2) व सेक्शन 71(ए) में और इसी के अनुरूप एसपीटी के सेक्शन-13 संशोधन किए गए हैं. वर्तमान कानून आदिवासियों की कृषियोग्य भूमि पर ही लागू है.
सेक्शन-21 में संशोधन के द्वारा उसके गैरकृषि इस्तेमाल को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को दी गई है. कहा गया है कि सीएनटी के लागू रहने के बावजूद सरकार जमीन के गैरकृषि उपयोग के लिए नियम बनाएगी.
समय-समय पर राज्य सरकार इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी. यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार गैरकृषि लगान थोप सकती है.
संशोधन विरोधी आशंका जता रहे हैं कि ऐसा होने पर सरकारों को जमीन का उपयोग बदलने की असीमित ताकत मिल जाएगी. एकबार ऐसा हो गया तो उक्त जमीन सीएनटी-एसपीटी एक्ट से बाहर हो जाएगी. ऐसा होते ही आदिवासियों को बेदखल करना आसान हो जाएगा.
पूर्व में हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से ऐसे कई फैसले आए हैं जिनमें उपयोग बदल जाने के बाद उसे सीएनटी-एसपीटी के तहत प्राप्त विशेष सुरक्षा से बाहर माना गया है.
गले नहीं उतर रहा सरकारी दावा
इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए सरकार ने बाद में यह प्रोविजन जोड़ दिया है कि उपयोग बदलने के बावजूद ऑनरशिप जमीन मालिक की ही रहेगी. पर, यह कैसे संभव होगा इसे बताया नहीं किया गया है.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तो इसे सीधा-सीधा सरकार का झूठ मानते हैं. कहते हैं ' यह भाजपा का वैसा ही झूठ है जैसा कश्मीर में धारा-370 हटाने और बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए वह बोलती रही है. मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं भी वहीं से निकला हूं'.
कात्यायन तो इसे महज नौकरशाही की बेवकूफी मानते हैं. कहते हैं कि 'चूंकि ऑनरशिप....।
Tuesday, 20 December 2016
धन्यबाद राकेश दा,जो आप सम्मानित होने नही गये,वैसे भी आप समाज के सम्मानित ब्यक्ति है ,और जिस ब्यक्ति से सम्मानित होना था,वो ब्यक्ति 16 साल से कहाँ थे,जब वो सरकार में उपमुख्यमंत्री थे तब हमारे बिनोद बाबू याद नही आये ।और अभी भी सीएनटी और एसपीटी के मामले में सरकार की दलाली कर रहे है।
"स्व0 बिनोद बाबु को समर्पित"
..........गीत.......
बिनोद बाबूक बातें, शिक्षित होवा घारें-घारें ।
मूरुख रहिया ना आर केउ,
ना त करभे फेउ-फेउ ।
करल धरल जीतो, सोभे पुराय ।।
हाथेँ धारा लाठि, निजें करा रखवाली,
छाड़ा दलालेकर संग,
ना त करतोउ बड़ि तंग ।
अरजल धन टा देतो, सोभें पुराय ।।
करा संगे युगति,
बइसा एक खाटी ।
अलग रहा ना आर केउ,
ना त करभे फेउ-फेउ ,
"काली" चरनेक धीरजाय, घुन: लागि जाय ।।
'
स्व0 बिनोद बाबु अमर रहे ।
स्व0 बिनोद बिहारी महतो के चरणों में शत शत नमन ।
Saturday, 17 December 2016
"बिनोद बाबु" जी हां, झारखंड के जनक बिनोद बिहारी महतो
"बिनोद बाबु"
जी हां, झारखंड के जनक बिनोद बिहारी महतो को यहां की जनता इसी नाम से जानती-मानती है।
कोयलांचल, लोहांचल की धरती मे यह नाम पिछले कई दशकों से सर्वाधिक आदर व सम्मान सूचक नाम रहा है। इस क्षेत्र मे बिनोद बाबू का वही स्थान है जो रांची क्षेत्र मे बिरसा मुंडा का।
साधारण गरीब कुड़मि किसान परिवार मे जन्मे बिनोद बिहारी महतो धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड के बड़ादाहा गांव के माहिंदी महतो व मंदाकिनी माहताइन के एकलौते पुत्र थे। 23सितंबर 1921मे इनका जन्म हुआ। बचपन से ही दृढ़-इच्छाशक्ति के धनी रहे बिनोद बाबु गांव से जंगल के रास्ते नित्य 15 किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने इलाके के पहले मैट्रिक पास करने वाले छात्र थे।ये रास्ता चलते हुए "सोहराई " गीतों के सुर मे पाठ जोर जोर से याद किया करते थे जिसे सुनकर राहगीर भौंचक हो उन्हे ताकते रह जाते। इनकी मां घर मे उगाई सब्जियां बेच कर इनकी पढ़ाई का खर्च वहन करती थी। आगे चलकर उन्होने वकालत पूरी की और धनबाद के उसी कोर्ट मे पहुंचे जहां एक समय किरानी रहते वे एक वकील से तिरस्कृत हुए थे।
एक वकील के तौर पर उन्होने अपने क्षेत्र के जनजीवन की कठिनाईयों त्रासदियों व सामंतवादी अत्याचारों को तीव्रता से महसूस किया व इन्हे इनसे मुक्त होने की दिशा मे अपना जीवन अर्पित करने की ठान ली। विशेषकर बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना के दौरान विस्थापितों पर हुए अत्याचारों से वे इतने मर्माहत हुए कि इनकी हक की लड़ाई लड़ना ही अपने जीवन का परम उद्देश्य बना लिया। ऐसे महत्वपुर्ण कालक्रम मे उनसे ए के राय और शिबु सोरेन जुड़ गये। यह 1966- 67 का वर्ष था जिसने झारखंड आंदोलन की दिशा- दशा ही तय कर दी थी। इससे पुर्व शिबू सोरेन "सोनोत-संताल समाज सूधार समिति" , एके राय सिंदरी मे "मजदूर युनियन" और बिनोद बाबु "शिवाजी समाज" आंदोलन द्वारा जनप्रिय छवि बना चुके थे परंतु क्षेत्र की राजनीति मे इन तीनो की धमक अबतक नही हो पायी थी और कांग्रेस की सामंतवादी राजनीति का प्रभुत्व पुरे कोयलांचल पर हावी था। इधर बिनोद बाबु गांव गांव मे अपनी ठेठ शैली मे जनअदालत लगाकर समाज के सताये गये लोगों को न्याय दिलाने की मुहिम मे रत थे।उनकी वाणी मे गरज और जोश ने क्रांतिकारी सामाजिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी और आततायी दबंग उनके नाम सुनते ही सिहरने लगे।उन्होने यह बड़ी तीव्रता से महसूस कर लिया था कि सरकारी न्याय व्यवस्था से इतर जनअदालतो के माध्यम से अपढ़ गरीब ग्रामीणो को न्याय दिलाने की पहल करनी होगी और साथ ही इन्हे अबतक रहे अशिक्षा के घोर अंधकार से बाहर निकालना होगा। शायद यही कारण था कि कभी किसी मंदिर मस्जिद निर्माण हेतू एकपैसा भी चंदा नही देने वाले बिनोद बाबू ने क्षेत्र मे स्कूल कालेज खोलने हेतू मुक्त हस्त धन-जमीन दान किया था। उनके द्वारा धनबाद-पुरुलिया-बोकारो-गिरीडीह क्षेत्र के अनेकों सुदूरवर्ती गांवो मे खुले स्कूल व कालेजो मे उनके सपनो को पंख लग रहे है। झारखंड आंदोलन के पुरोधा बनकर इन्होने न सिर्फ अलग राज्य निर्माण की नींव मजबूत की बल्कि शिक्षा आंदोलन के द्वारा सदियो से पिछड़े क्षेत्रो को राष्ट्र की मुख्यधारा मे लाने का प्रशंसनीय काम किया। उनका "पढ़ो और लड़ो" नारा सदियो से दमित जनजीवन के बीच धूमकेतू बनकर पुरे झारखंड के जनमानस मे कौंधने लगा था। परंतु यह झारखंड के लिए अतिशय दूर्भाग्य रहा कि अलग राज्य आंदोलन को मंझधार मे छोड़ अचानक उन्होने अलविदा ले ली। 18 दिसंबर1991 को दिल्ली संसद भवन मे अचानक उनकी तबियत बिगड़ जाने और थोड़ी ही देर पश्चात हुए उनके निधन से पुरा झारखंड रो पड़ा। परंतु उनका सपना अंततः पुरा हुआ और दशकों से चले आंदोलन ने झारखंडवासियों को 15नवंबर2000 मे नये राज्य की सौगात दी। झारखंड को औपनिवेशिक लूट से बचाने, झारखंडी सभ्यता संस्कृति को अक्षुण्ण रखने व झारखंडी भाषाओं को प्रतिष्ठित करने ने वे जीवन पर्यंत जुटे रहे। वे ग्रामीण जनो से हमेशा अपनी मातृभाषा कुड़मालि मे ही बोलते व अपनी भाषा का सम्मान करने को प्रेरित करते थे।
आज भी उनके विचारो और उनकी छवि के बिना कोई झारखंड नामधारी पार्टी की राजनीति नही चल सकती। वे सच्चे अर्थों मे झारखंड के जनक थे, है और रहेंगें।सधन्यवाद-
महादेव महतो डुंगरिआर
Pic - Ajayshankar Mahato