Thursday, 22 December 2016

वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया

वो ठग है जो जगजाहिर है फिर भी अपनापन का ढोंग रचाया,
किस्मत हमारी फुटी थी जो अपनों ने ही उनका साथ निभाया !

ये कैसी आंधी है जो बिन वर्षात के चला आया,
कुड़मियत  के बहाने
वोट बैंक और कुड़मी को ही निशाना बनाया !

शासक बना झारखंड राज्य का, अक्खा झारखंड लूट गया...
तरस गये हम रोजी-रोजगार को फिर भी हमें न होश आया !

बाबू के सपनों का झारखंड अब राजनीतिक का मंच बना, रोजी-रोजगार, राशन-जमीन बाहरियों का रंगमंच बना !

शर्म न आई राजनीतिक करने में पर बढ़ा उनका अब मान-सम्मान,
लुटकर आदिवासी-मुलवासी के जान और जमीन... कर आये वो गंगा स्नान  !

लुटने की कोई कसर न छोड़ी अभी भी प्रयास जारी है,
सत्ता में रहकर निर्लज होकर कहते झारखंड राज्य हमारी है।

खाली पड़े रसोई के डिब्बे और
खेत-जमीन भी ठगा गया, उम्मीद थी कुछ देंगे साहब पर वो भाषण दे कर चला गया !

समाज और राज्य की बिकट घड़ी में झारखंडीयों को कुछ रास न आया,
ये कैसी सित लहर है जो विनोद बाबू के स्टेच्यू पे सवार आया !!

नोट : ये लेख महामहिम सुदेश महतो जी से कोई संबंध नहीं है  !

Dayamay

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